तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं ये काम किस ने किया है ये काम किस का था वफ़ा करेंगे निभाएंगे बात मानेंगे तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था न पूछ-पाछ थी किसी की, न आवभगत तुम्हारी बज्म् में कल एहतमाम किस का था हमारे ख़त के तो पुर्जे किए पढ़ा भी नहीं सुना जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था हर एक से कहते हैं क्या बेवफ़ा निकला ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था
speak your mind loud and clear..... .........jitender singh
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speck u'r mind out now..........